जनबोल
भारत के मशहुर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का आज 140वीं जयंती है .प्रेमचंद ने अपना पूरा जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया . उनकी उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्हें सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर के मशहूर और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले रचनाकारों में से एक बना दिया .मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था और उसी तरह उनके कहानियों में भी आम इंसान से जुड़े विभिन्न पहलुओं का वर्णन होता जिसे पढ़ कर हर इंसान को अपनापन सा महसूस होता है .
प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से लगभग छह मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था. प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया था . प्रेमचन्द के दादाजी गुरु सहाय सराय पटवारी और पिता अजायब राय डाकखाने में क्लर्क थे। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था.
प्रेमचंद जब 6 वर्ष के थे, तब उन्हें लालगंज गांव में रहने वाले एक मौलवी के घर फारसी और उर्दू पढ़ने के लिए भेजा गया. इसलिए उन्हे हिन्दी के साथ -साथ उर्दु और फारसी का भी ज्ञान था . यही कारण था की प्रेमचंद ने उर्दु कथा साहित्य में भी अपना नाम बुलंदियों तक ले गए. उन्होने अपना जीवन हिंदी और उर्दू साहित्य में व्यापक काम किया . उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की.प्रेमचंद हिन्दी के पहले साहित्यकार थे जिन्होंने पश्चिमी पूंजीवादी एवं औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति तथा भारतीय जीवन दृष्टि की रक्षा की।
अपनी रचना ‘गबन’ के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है. प्रेमचंद की ईदगाह कहानी काफी प्रसिद्ध है . इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है.