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बिहार के सिविल सोसाइटी ने कोविड संकट के मद्देनजर बिहार विधानसभा चुनाव स्थगित करने की मांग को लेकर चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपा

जनबोल न्यूज बिहार में कोरोना के महाविस्फोट को देखते हुए बिहार के सिविल सोसाइटी ने आज बिहार विधानसभा का चुनाव स्थिति सामान्य होने तक स्थगित

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shaziya shamim

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बिहार में कोरोना के महाविस्फोट को देखते हुए बिहार के सिविल सोसाइटी ने आज बिहार विधानसभा का चुनाव स्थिति सामान्य होने तक स्थगित करने की मांग की.चुनाव आयोग को लिखे पत्र में मुख्य रूप से पटना विश्वविद्यालय की इतिहास विभाग की पूर्व अध्य्क्ष प्रो डेज़ी नारायण, ए एन सिन्हा Insitutue के पूर्व निदेशक डी एम दिवाकर, प्रख्यात शिक्षाविद ग़ालिब, किसान नेता राजाराम सिंह, पत्रकार प्रणव कुमार चौधरी, पुष्पराज, विद्यार्थी विकास सहित कई प्रख्यात शिक्षकों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्ताक्षर हैं. हस्ताक्षर युक्त कॉपी पर्यावरणविद व सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव कुमार ने चुनाव आयोग को जाकर सौंपा.

सिविल सोसाइटी ने स्पष्ट रूप से कहा कि बिहार में अभी लोगों की जिंदगी की हिफाजत का सवाल नम्बर एक का सवाल है, लोगों की जान की कीमत पर हमें चुनाव मंजूर नहीं. साथ ही यह भी कहा कि चुनाव का वर्चुअल तरीका बड़ी आबादी को मतदान के अधिकार से ही वंचित कर देगा तथा वह सही अर्थों में जनमत का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा.

गंभीर होते कोविड संकट के मद्देनज़र बिहार विधानसभा चुनाव स्थगित करने के सम्बन्ध में नागरिक समाज का ज्ञापन

महाशय,

आज पूरा समाज कोरोना महामारी की चपेट में है. दिन-प्रतिदिन इसका प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. नतीजतन, बिहार सरकार बार-बार लाॅकडाउन लगा रही है. यदि हम डब्लूएचओ की रिपोर्ट की बात करें तो अगस्त-सितंबर तक हमारा राज्य कोरोना के एक बड़े सेंटर के रूप में उभर सकता है. शहरों के साथ-साथ अब गांवों में भी कोरोना विस्फोट होने लगा है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह अपने कम्युनिटी संक्रमण के दौर में पहुंच रहा है. डाॅक्टर व स्वास्थ्यकर्मी भी लगातार संक्रमित होते जा रहे हैं. बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण स्थिति लगातार गम्भीर होती जा रही है.

दूसरी ओर, कोरोना को रोकने के लिए किए गए लाॅकडाउन ने गरीबों-मेहनकशों की कमर तोड़ दी है और सूबे की अधिकांश जनता भोजन तक का भयावह संकट झेल रही है. लाखों-लाख परिवारों के सामने जिंदगी बचाने का संकट है और वे लगातार एक पीड़ादायक स्थिति से गुजर रहे हैं. आवागमन, अस्पताल, कोर्ट आदि की स्थिति अभी भी सामान्य नहीं हुई है और आने वाले दिनों में कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए सामान्य होने की कोई संभावना नहीं है.

इन्हीं परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव कराए जाने की बात हो रही है. आम चर्चा है कि इस बार चुनाव वर्चुअल तरीके से कराया जाएगा. चुनाव का तकाजा है कि उसमें जनता की व्यापक भागीदारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन महामारी के आतंक और जिंदा रहने की जद्दोजेहद के बीच व्यापक जनता की भागीदारी की गारंटी करवा पाना क्या संभव हो सकेगा? और यदि ऐसा नहीं होता है तो चुनाव अपने संपूर्ण लोकतांत्रिक औचित्य को ही खो देगा और वह महज मजाक बन कर रह जाएगा. सामान्य परिस्थिति में मतदान का प्रतिशत 60-65 से ज्यादा नहीं रहता है. अगर यह घटकर 25-30 प्रतिशत हो जाए तो ऐसे चुनाव को जनमत संग्रह कैसे कहा जाएगा?

विगत दिनों AIPF (ऑल इंडिया पीपल्स फोरम) की पहलकदमी पर पटना के सिविल सोसाइटी का एक वेबिनार हुआ. वेबिनार में यह बात प्रमुखता से उठी कि हमारे देश का लोकतंत्र समावेशी चरित्र का रहा है और वह विभिन्न तबकों की विशिष्टताओं का ख्याल रखते हुए सबको समान अधिकार प्रदान करता है. राज्य में कोरोना बेकाबू हो गया है, और ऐसी स्थिति में यदि चुनाव हुआ तो वह लाशों की ढेर पर कटा-छंटा चुनाव होगा, जिसमें बड़ी आबादी की कोई भूमिका ही नहीं होगी. बिहार की व्यापक आबादी को दरकिनार कर चुनाव कराना असंवैधानिक है. मार्च में पंचायतों के उपचुनाव को कोरोना के नाम पर स्थगित कर दिया गया था, और अभी खुद चुनाव आयोग ने कुछ उपचुनावों को स्थगित कर दिया है, तब विधानसभा चुनाव कराने की हड़बड़ी क्यों है? आज आमलोगों की बात छोड़ दी जाए, अपर सचिव किस्म के लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. चुनाव में यदि जनभागीदारी नहीं होती है तो चुनाव का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

चुनाव आयोग को न केवल राजनीतिक पार्टियों बल्कि चिकित्सकों, चुनाव के काम में लगने वाले शिक्षकों व कर्मचारियों और व्यापक जनता से भी राय लेनी चाहिए. कई शिक्षक संगठन व कर्मचारी यूनियन इस महामारी के दौर में चुनाव का विरोध कर रहे हैं और चुनाव कराने में अपनी जान पर संकट देख रहे हैं.

जहां तक वर्चुअल तरीके का सवाल है , यह सत्ता, ताकत और पैसे से संपन्न सत्ताधारी पार्टियों के ही मुफीद होगा और आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष की बातें जनता तक आंशिक तौर पर ही पहुंच पाएगी. एकतरफा और सिर्फ सत्ताधारी दल के चुनाव प्रचार से तय है कि जनता गुमराह की जाएगी और सही फैसला नहीं ले पाएगी. इस प्रकार, सत्ताधारी दल पूरे चुनाव को ही हथिया लेने में सफल हो जायेंगे और चुनाव जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ क्रूर मजाक बन कर रह जाएगा. भाजपा-जदयू ने करोड़ों-करोड़ रुपए खर्च करके वर्चुअल रैलियां आरंभ भी कर दी है और यह उन्हीं को ही एकतरफा रूप से फायदा पहुंचाने का हथियार बन जाएगा.

ट्राई के सालाना रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2020 में पूरे भारत में टेलीफोन घनत्व 87.66 प्रतिशत है. वहीं बिहार में यह आंकड़ा राष्ट्रीय आंकड़ा से काफी नीचे महज 53.13 प्रतिशत ही है. बिहार में इंटरनेट का विस्तार महज 37 प्रतिशत है. जाहिर है कि इसका बहुत बड़ा हिस्सा शहरों और संपन्न लोगों के पास है और एक बहुत ही छोटा हिस्सा देहात और आम लोगों के पास होगा. यह मानी हुई बात है कि बिहार की आबादी की 80 प्रतिशत संख्या अब भी गांवों में रहती है. ऐसे हालात में वर्चुअल रैली के जरिए व्यापक जनता तक बात पहुंचाना असंभव है. लिहाज़ा यह लोकतंत्र विरोधी होगा.

चुनाव आयोग का कहना है कि कोराना से बचाव के लिए तमाम चुनावकर्मी पीपीइ का इस्तेमाल करेंगे. लेकिन क्या इतने भर से कोरोना संक्रमण को रोका जा सकता है? मतदान के दौरान बूथों पर भीड़ स्वाभाविक है. सरकार ने अभी तक किसी सामूहिक आयोजन में भागीदारी की अधिकतम संख्या 50 तय कर रखी है. आयोग ने बूथ पर वोटरों की संख्या घटाकर अधिकतम 1000 करने का फैसला किया है. लेकिन क्या यह भी एक बड़ा जमावड़ा नहीं होगा और क्या इसके जरिए कोरोना संक्रमण फैलाव की प्रबल संभावना नहीं बनती है ? जानकारी मिली है कि आयोग अनेक जगह पुराने बूथ में ही नया बूथ बनाना चाहता है. तब कोरोना संक्रमण के फैलाव पर कैसे नियंत्रण हो सकता है?

लक्षण रहित संक्रमित मतदाता से अन्य मतदाता में संक्रमण नहीं फैलने के क्या उपाय किए जाएंगे? सरकारी आंकड़ा कहता है कि बिहार में कुल संक्रमित मरीजों का 92 प्रतिशत लक्षण रहित संक्रमितों का है. क्या संक्रमण बढ़ाने में इनकी बड़ी भूमिका नहीं होगी? कुल मिलाकर वर्तमान स्थिति में चुनाव कोरोना संक्रमण का महाविस्फोट बन जाने को बाध्य है.
इसलिए, चुनाव का वर्चुअल तरीका वास्तविक अर्थों में लोकतन्त्र विरोधी है. लोकतंत्र का मतलब होता है – जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा. इसलिए कोई भी इस तरह की प्रक्रिया जो समस्त जनता को बराबर का अधिकार न दे सके, उसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है?

कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए लोगों की जिंदगी की रक्षा हम सबों की सर्वप्रमुख चिंता होनी चाहिए.

अतः नागरिक समाज की ओर से हमारा आपसे आग्रह है कि राज्य में सामान्य स्थिति बहाल होने तक विधानसभा का चुनाव स्थगित कर दिया जाए.

 

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