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न्यायालय प्रशासन व सरकार को अधिवक्ताओं ने दिया एक सप्ताह का अल्टीमेटम, नही तो होगा आंदोलन

जनबोल न्यूज मार्च 2020 से ही पीड़ितों को न्याय नही मिल रहा है, आम जनता न्याय पाने का मौलिक अधिकार से वंचित हैं। नॉवेल कोरोना

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shaziya shamim

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मार्च 2020 से ही पीड़ितों को न्याय नही मिल रहा है, आम जनता न्याय पाने का मौलिक अधिकार से वंचित हैं। नॉवेल कोरोना वायरस को देखते हुए सरकार ने ये फैसला लिया था सभी न्यायिक कार्य वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से जारी रहेगी लेकिन विडंबना यह है कि अधिवक्तागण पीड़ित जनता को न्याय दिलाये तो आखिर कैसे जब न्यायालय का दरवाजा ही बन्द हो, सारे न्यायिक कार्य ठप पड़े हों ऐसे में अधिवक्तागण न्यायिक कार्य कैसे करेंगें? निचली अदालतों में हर एक कार्य हेतु फ़िजिकल तरीके से कार्यों को निपटना पड़ता है।

अब स्थिति यह है कि 5 महीना बीत चुका है और वर्चुअल कोर्ट के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। अधिवक्ता समाज की नियमियमत न्यायिक कार्य ना मिलने से आज सड़क पर आने को मजबूर हैं, दूसरी तरफ आम जनता, पीड़ित जनता न्याय पाने से वंचित है और सरकारी बाबू लोग वर्चुअल के नाम पर तनख्वाह उठा रहे हैं वहीं न्यायिक कार्य जस का तक ठप परा हुआ है। सीधे तौर पर कहें तो न्याययिक पदाधिकारी को कोई फर्क ही नहीं पर रहा क्योंकि उनको सरकार वेतन दे ही रही है लेकिन ऐसे में इस कुव्यवस्था का शिकार आम जनता हो रही है, इसका खामियाजा पीड़ित जनता को भुगतना पर रहा है।

अधिवक्ता समाज बेकारी, बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, अधिवक्ताओं को सरकार कोई आर्थिक सहायता नहीं कर रही है। जो संपन्न घराने से हैं, निपुन्न हैं उनके लिए सब कुछ किया जा रहा है जो सरा सर अन्याय है। वक़ालत के पेशे में अभी अभी जिन युवा अधिवक्ताओं ने कदम रखें हैं उनके लिए सरकार ने अभी तक कोई आर्थिक पैकेज की घोषणा तक नही की ।

यह जानकारी देते चलें कि केरल राज्य सरकार ने नए अधिवक्ताओं को स्टाइपेंड दे रही है। ऐसे में यहाँ स्वतंत्र वक़ील के पास काम तभी आएगा जब न्याययिक कार्य सुचारू ढंग से चलेगें। अब अधिवक्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह हैं की अपना व अपने परिवार को कैसे चलाएगें?

बताते चलें कि एडवोकेट एक्ट. के अनुसार जो कोई भी वक़ालत के पेशे से जुड़े हैं वे कोई भी दूसरा कोई रोजगार नही कर सकते अतः इस मुद्दे को भी संशोधन को लेकर अधिवक्ताओं ने पूर्व में अपनी बातें सरकार व माननीय न्यायालय के समक्ष रखने का काम किया है उस पर भी कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

इन्हीं तमाम समस्याओं एवं गंभीर मुद्दों को लेकर पटना सिविल कोर्ट परिसर में सभी अधिवक्ताओं की ओर से एक बैठक किया गया और मोर्चा का सर्वसम्मति से निर्माण किया। मोर्चा के नाम “जिला अधिवक्ता संघर्ष मोर्चा, पटना” रखा गया और बैठक में निम्न मुद्दों को उठाते हुए प्रस्ताव पारित किया गया जो क्रमश: इस प्रकार है:-
(1) वर्चुअल की जगह पूर्णरूपेण फ़िजिकल न्याययिक कार्य शुरू किया जाए।
(2)सभी न्याय्यालयों का डेली काउज लिस्ट जारी किया जाए एवं आर्डर शीट को भी न्यायालय के साईट पर अपलोड किया जाय।
(3)एक सप्ताह के अंदर सभी न्याययिक कार्य शुरू नहीं किये जाने की स्थिति में जिला अधिवक्ता संघर्ष मोर्चा पटना के बैनर तले सभी अधिवक्तागण सिविल कोर्ट पटना के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ जायेंगें।
(4) इसके अलावा बैठक में यह भी प्रस्ताव पारित किया गया कि अगर एक सप्ताह में पूर्णरूप से न्याययिक कार्य नहीं शुरू किया गया तो न्याययिक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों का वेतन पर रोक लगाने की अनुशंसा किया जाएगा।

आज के इस बैठक की अध्यक्षता वरीय अधिवक्ता सर कौशल किशोर ने किया। वहीं बैठक में वरीय अधिवक्तागण क्रमशः जगदीश्वर प्रसाद, रामजीवन प्रसाद सिंह,अशोक कुमार यादव,संजय कुमार श्रीवास्तव, मधुसूदन लाल जमुआर,अरविंद तिवारी,रामाशीष ठाकुर,
युवा अधिवक्ता महेश रजक, शिवगंगा कुमार गुप्ता,अनुज कुमार, राज कुमार, संजय कुमार श्रीवास्तव,दिगंबर कुमार सिंह,उपेंद्र कुमार,सशांक कुमार सिंह,रामाशीष ठाकुर,वीरेंद्र शर्मा,क्रांति कुमार,शैलेश कुमार सिंह,नदीम अख्तर,राज कुमार प्रसाद, विनोद सिंह समेत सैंकड़ों अधिवक्तागण शामिल थे।

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