मंत्रीमंडल के गठन के बाद पदभार ग्रहण करते हीं बिहार के शिक्षा मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। शिक्षा मंत्री के इस्तीफे के बाद अब बिहार सरकार के दो और कैबिनेट मंत्री के मंत्री पद की राह मुश्किल नजर आरही हैै। जिन मंत्री के मंत्री पद पर सवाल उठने वाली है उनमें जदयू के अशोक चौधरी और वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी का नाम सबसे आगे है। ये दोनों नेता अभी तक बिहार बिधआन मंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। मंत्री पद हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि आप यातो विधान सभा या विधान परिषद के सदस्य हों । इन दोनों मंत्रियों को पदभार बीना किसी सदन के सदस्य हुए हीं दी जा चुकि है।
यह आनेवाली है अर्चनें।
नवगठित नीतीश सरकार के दोनों मंत्री अशोक चौधरी और मुकेश सहनी अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। छह महीने के अंदर दोनों को विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य बनना जरूरी होगा। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों मनोनयन विधान परिषद में राज्यपाल कोटे के तहत हो जाएगा। पशुपति कुमार पारस भी मंत्री बनने के बाद राज्यपाल कोटे से हीं मनोनीत हुए थे लेकिन अब यह इतना आसान भी नहीं है।
महाराष्ट्रा में मनोनय पर उठ चुका है सवाल
मनोनय के प्रक्रिया पर इसी साल कोरोना पीरियड में महाराष्ट्रा में जारी नाटकिय घटनाक्रम के दौरान सवाल उठ चुका है। बताते चलें कि उद्धव ठाकरे को पूरे छह महिने बीतने पर भी राज्यपाल उन्दें मनोननीत कर महाराष्ट्रा विधान परिषद के सदस्य नहीं बना रहे थे जिसके कारण उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जानेवाली थी तब महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मंत्रिमंडल सदस्य के विधान परिषद में मनोनयन को अनैतिक और असंवैधानिक बताया था। यही नहीं महाराष्ट्र कैबिनेट ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में मनोनीत करने का प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा था, जिसे राज्यपाल ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद लॉकडाउन के दौरान ही महाराष्ट्र विधान परिषद के विधान सभा कोटे के लिए चुनाव कराना पड़ा था, जिसमें निर्वाचित होकर हीं ठाकरे परिषद सदस्य बने थे। महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के आधार पर ही बिहार विधान परिषद के विधान सभा कोटे के 9 सदस्यों का चुनाव लॉकडाउन के दौरान कराया गया था।
महाराष्ट्रा जैसी हीं है हालत गेंद राज्यपाल के पाले में
महाराष्ट्र में मनोनय वाली हालात बिहार में भी होगयी है। मनोनय से संबंधित पूरी प्रक्रिया का गेंद राज्यपाल के पाले में है। हालात है कि कैबिनेट के सदस्य अशोक चौधरी और मुकेश सहनी हैं, वह कैबिनेट अपने सदस्यों को विधान परिषद में मनोनयन का प्रस्ताव कैसे भेज सकती है। इसी आधार पर हीं महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मनोनयन के कैबिनेट प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। बिहार में ही कई मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद परिषद के सदस्य बने थे, लेकिन किसी ने खुद को राज्यपाल कोटे से मनोनीत नहीं करवाया था। सभी विधान सभा कोटे से परिषद के सदस्य बने थे। महाराष्ट्र के राज्यपाल की व्यवस्था को बिहार के राज्यपाल ने भी स्वीकार कर लिया तो मुकेश सहनी और अशोक चौधरी के सामने परिषद सदस्यता पर संकट खड़ा हो सकता है ऐसे में मंत्री पद जाने की पूरी संभावना है।