chirag paras will unit

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लोजपा में टूट ( ljp crisis ) 12 सितंबर को नहीं दिखेंगे यह तय हो चुका है। दरअसल लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान की बरखी 12 सितंबर को मनाना तय हुआ है। कार्ड पर आयोजकों में जिनका नाम है उसमें कार्ड बांटने वाले चिराग पासवान के साथ-साथ पशुपति पारस और प्रिंस राज  का भी नाम है। कार्ड सभी पार्टियों में बंट गयी है अब कार्ड पशुपति पारस को भी मिला है। पारस ने भी बरखी पर आयोजित हो रहे कार्यक्रम में जाने को हामी भर दिया है। यहीं नहीं पारस ने यह भी कहा कि रामविलास पासवान ( Ramvilash paswan ) की बरखी पर उन्हें आमंत्रण नहीं भी दी जाती तब भी वे जाते। साथ हीं पारस ने चिराग पासावन ( Chirag paswan )  की सराहना भी की है उन्होने कहा है कि ये अच्छी शुरुआत है कि उन्होंने घर आकर कार्ड दिया ।

सियासी पलटन की संभावना भी

लोजपा के अंदर के टूट ( ljp crisis ) के बाद यह पहला मौका होगा जब चाचा भतीजा एक साथ होंगे। मौका है  लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के बरखी का । सियासी पलटन में माहिर रामविलास पासवान अब भले नहीं हैं लेकिन बरखी पर जिस प्रकार से चाचा भतिजा एक मंच पर पहुँच रहे हैं सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं। संभावना जतायी जा रही है कि  रामविलास के बरखी के बहाने राजनीतिक मिलन की भी शुरूआत हो सकती है। सवाल हो भी और संभावना जतायी जानी भी चाहिे क्यों न जब टूट के इतने महिने बाद न पारस की कोई पार्टी आयी न हीं लोजपा पर दावे को लेकर कोई संवैधानिक दांव पेंच। हाँ दृष्टि पटल पर जो नजर आया वह है पार्टी की मजबूती की अलग अलग तैयारी । खैर चिराग को जमीन पर भेजा जाना और पार्टी के पुराने लोग को वापस लाने का कवायद शुरू करना चिराग को मजबूती से स्थापित करने का चाल है या सच में राजनीतिक घमासान यह तो आने वाला समय हीं बतायेगा।

MODI NITISH IMAGE

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जब से ट्विटर आया है नेताओं के लिए मन की बात कहना आसान हो गया है और लड़कर मीडिया में खबर बनवाना भी। बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पुरानी है और उठाने वाले लोग भी राजनीति में पुराने। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को एक बार फिर से हवा दी जा रही है। ध्यान रहे, बस हवा है। कुछ और बात कहने के लिए कुछ और कहने का तरीका पुराना है। आने वाले कुछ महीनों में बिहार की सियासत में नूराकुश्ती का खेल तेज होने वाला है। संभव है श्री बाबू के लम्बे कार्यकाल के रिकार्ड को ब्रेक करते हीं नीतीश बाबू ब्रेक लें। ब्रेक के बाद क्या होगा इसकी तैयारी  में मांझी, साहनी सब जुटे हैं। लिहाजा पाण्डेय जी की बयानबाजी सत्ता का सत्ता से लड़ाई का ,खत्म नहीं हुआ था कि मांझी -कुशवाहा मिलकर अब फिर से सत्ता बनाम सत्ता की लड़ाई शुरू करने की तैयारी मे जुट चुके हैं।

बिहार बने विशेष राज्य (Special status to Bihar), बनायेगा कौन ? 

बिहार को विशेष राज्य की मांग कॉग्रेस के केंद्र वाली सरकार के खिलाफ नीतीश बाबू का मुहिम था। कॉग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी है। 2014 में नीतीश बाबू मोदी के खिलाफ थे और 2019 में साथ। सियासी उलटफेर के ध्रुव लालू यादव भी अब बिहार की सियासत  में जमानत लेकर आ चुके है । लिहाजा मांझी,साहनी सब नई संभावना तलाशने में जुटे हैं । वरना कोई क्यों लगातार नई- नई मांग अपनी हीं सरकार से सार्वजनिक रूप से रखेगा ?  अब नई मांग फिर सत्ता की ओर से सत्ता से ही रखा गया है । मांग बिहार को विशेष राज्य  के दर्जे की है। कुशवाहा 5 जून को  संध्य़ा 2:18  मिनट पर नीतीश बाबू की तारीफ करते प्रधानमंत्री कार्यालय और नीति आयोग से मांग की कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए । मांझी थोड़ा पिछड़ गये । कुशवाहा की ट्विट पढ़े होंगे  लेकिन सोंच में पड़े रहे कि क्या कहा जाये? 3 घंटे बाद ट्विट आया लेकिन ट्विट पढ़ने पर साफ- साफ नहीं कह सकते कि नीतीश बाबू की तारीफ कर रहे या विरोध ।  मांझी लिखते हैं

कम संसाधनों के बावजूद नीतीश जी ने बिहार की बदतर क़ानून व्यवस्था और बेहाल शिक्षा महकमे को दुरुस्त करने में अपनी पुरी ताक़त लगा दी है”

मांझी यहीं नहीं रूके , आगे  कहा

डबल इंजन की सरकार में विशेष दर्जा नहीं मिला तो कभी नहीं मिलेगा।

तारीफ और सस्पेंस से भरे कुशवाहा और मांझी के ट्विट पर हम सब को सोंचना तो चाहिए ही। इतने साल सत्ता में रहने के बाद भी जो विशेष राज्य के दर्जे की मांग नहीं मनवा सके तो फिर से ध्यान आकर्षण प्रस्ताव क्यों ला रहे ? सवाल अब भी जारी है कि बिहार बने विशेष राज्य ( Special status to Bihar) लेकिन बनायेगा कौन ?

5G impact on environment

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हर चर्चा के शुरू होने से पहले की एक पटकथा होती है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने जब उफान पकड़ा तो रोज हजारों लोग मरने लगें । अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा तो कहानी शुरू हुयी कि कहीं देश में शुरू हो रहा 5जी सेवा  ( 5G Service )  तो नहीं है हाहाकार की वजह? सवाल उठाया जाने लगा, अलग- अलग तर्क दिये जाने लगें कि 4 जी के कारण छोटे छोटे जीव मारे गये। कहीं 5जी सेवा (5G Service)  इंसान को तो नहीं निगलेगा? चर्चा सोशल मीडिया से शुरू हुआ तो अभिनेत्री से पर्यावरणविद बनीं जूही चावला भी मैदान में उतर गयीं। कोर्ट में 5जी नेटवर्क को चुनौती तक दे डालीं । हालांकि कोर्ट ने पेटिशन खारिज करते हुए 20 लाख का जुर्माना तक लगा दिया। साथ हीं कोर्ट ने टिप्पणी की कि ये सिर्फ एक पब्लिसिटी स्‍टंट था जिसमें मीडिया का ध्‍यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश की गई थी । खैर केस का परिणाम जो भी रहा हो लेकिन बड़ा सवाल है कि क्‍या वाकई पर्यावरण और जानवरों के लिए खतरनाक है 5जी सर्विस ? ( Is 5G service really dangerous for the environment and animals? )

क्या होंगे 5 जी के फायदे?

क्‍या वाकई पर्यावरण और जानवरों के लिए खतरनाक है 5जी सर्विस ? ( Is 5G service really dangerous for the environment and animals? ) इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने से पहले आइए हम जानते हैं क्या होंगे 5 जी सेवा ( 5G service ) के फायदे ?  दरअसल दुनिया के कई देश इस समय 5जी सर्विस ( 5G service )  को लॉन्‍च करने की तैयारी में जूटे हैं.। कई रिसर्चर की तरफ से इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि 5जी सेवा ( 5G service ) इंसानों और पर्यावरण के लिए खतरा हो सकता है। यही नहीं कई वैज्ञानिकों और डॉक्‍टरों की तरफ से अपील की गई है कि 5जी को रोका जाना चाहिए। हालांकि तकनीकी क्रांति के इस युग में 5जी की जरूरत इस बात से समझा जा सकता है कि 5जी ,  4जी की तुलना में 1000 गुना ज्‍यादा तेज इंटरनेट एक्सेस देने जा रहा  है।  कहा तो यह भी जा रहा कि 5जी के आने के बाद आप अपने फोन में 100 जीबी प्रति सेकेंड की रफ्तार से 4 हजार वीडियोज देख सकेंगे।

कई मनगढंत कहानी चलन में है।

क्‍या वाकई पर्यावरण और जानवरों के लिए खतरनाक है 5जी सर्विस ? ( Is 5G service really dangerous for the environment and animals? ) इसे समझने की प्रक्रिया में हमें यह भी जानना चाहिए कि 5जी को लेकर क्या मनगढ़ंत कहानिया बनाई जा रही है और क्या है उसकी मूल वजह ? वैसे तो 5जी अभी लॉन्च नहीं की जा सकी है  लेकिन जब से 5जी की लॉन्चिंग का ऐलान किया गया है तब से ही लोग कई तरह की कहानियाँ बना रहे हैं। यही नहीं लोगों का रवैया साफ- साफ 5जी के प्रति उदासीनता भरी है। 5जी सर्विस के साथ सुरक्षा को लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। एक रिपोर्ट में तो यहाँ तक कहा गया था कि 5जी की वजह से नीदरलैंड्स में सैंकड़ों चिड़‍िया मर गई थीं। हालांकि बाद में ये खबर सिर्फ एक अफवाह साबित हुई। इस तरह की कई और फेक स्‍टोरीज मीडिया में आ चुकी हैं। दरअसल 5जी को लेकर जो चिंता जताई जा रही है वो इसकी अत्‍यधिक हाई फ्रिक्‍वेंसी की वजह से है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसकी फ्रिक्‍वेंसी 30 गिगाहर्ट्ज से लेकर 300 गीगाहर्ट्ज तक होने वाली है।

 एंटीना का जाल बुन रहा 5जी के लिए कहानियों का जाल

5जी सेवा पूर्ण रूप से वायरलेस होने वाली है । ऐसा करने के लिए बताया जा रहा है कि 5जी सर्विस में हर 100 से 200 मीटर की दूरी पर एक एंटीना होगा।  ऐसे में ऐंटीना का जाल 5जी सेवा को उपलब्ध करवा रहा होगा। हालांकि इस सर्विस का जानवरों और पर्यावरण पर कोई प्रभाव होगा इसे लेकर दो तरह के मत हम सबों के सामने  हैं। इन दोनों मतो को जान कर हीं हम यह निर्णय ले पायेंगे कि क्‍या वाकई पर्यावरण और जानवरों के लिए खतरनाक है 5जी सर्विस ? ( Is 5G service really dangerous for the environment and animals? )

पहली मत वायरलेस कंपनियों और अमेरिकी संस्‍था सीडीसी की है। सीडीसी  के  तरफ से जनता को भरोसा दिलाया गया है कि 5जी नेटवर्क पूरी तरह से सुरक्षित है।

दूसरी मत  वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन के तहत आने वाली इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने की है।  अमेरिका की नेशनल टॉक्‍सीकोलॉजी प्रोग्राम (NTP) की तरफ से हुई स्‍टडी में इस बात के सुबूत मिले हैं कि सेलफोन की ज्‍यादा फ्रिक्‍वेंसी कैंसर के खतरे को बढ़ाती है। हालांकि अभी कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले हैं कि 5जी की वजह से जानवरों को कोई नुकसान पहुंचता है भी है या नहीं ?

अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं !

5जी सेवा अभी शुरू नहीं हुयी । लॉन्च तक 5जी नहीं किया जा सका है बावजूद इसके साल 2019 और 2020 में कुछ स्‍टडीज हुईं । हालांकि स्टडीज में ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है कि  इस सेवा का जानवरों पर कोई असर पड़ेगा। जब तक कोई ठोस सुबूत नहीं मिल जाते हैं तब तक 5जी पर कुछ भी कहना सही नहीं होगा। यह सेवा जानवरों और पर्यावरण के लिए खतरा है, इसे जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना हीं होगा। हम कह सकते हैं कि क्‍या वाकई पर्यावरण और जानवरों के लिए खतरनाक है 5जी सर्विस? ( Is 5G service really dangerous for the environment and animals? )  इसका हम सबके पास अब भी कोई ठोस जवाब नहीं है।

TUNA PANDEY EXPELLED FROM BJP

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भाजपा के एम. एल. सी. टुन्ना पाण्डेय बिहार के मुख्यमंत्री और खुद अपनी पार्टी भाजपा के खिलाफ खूब बोल रहे थे। लिहाजा भाजपा ने पाण्डेय जी को चुप करवाने का तरीका निकाला। पाण्डेय जी अब भाजपा में नहीं रहे। भाजपा ने अपने एमएलसी  टुन्ना पाण्डेय ( BJP expelled Tuna Pandey)  को पार्टी से निकाल दिया है। एमएलसी साहब के निलंबन से संबंधित चिट्ठी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जयसवाल ने जारी कर विदायी की घोषणा  कर दी  है।

जारी हुआ था कारण बताओ नोटिस

नीतीश कुमार और खुद भाजपा के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे टुन्ना पाण्डेय को निकाले जाने (BJP expelled Tuna Pandey ) से पहले भाजपा ने कारण बताओ नोटिस थमाया था। 10 दिनों में नोटिस का जवाब देना था। हालांकि पार्टी ने नोटिस के साथ यह तय कर दिया था कि यदि  संतोषजनक जवाब नहीं आया तो पाण्डेय जी की लूटिया डूबने वाली है।

पाण्डेय जी और कुशवाहा में चल रहा था शह- मात का खेल

पाण्डेय जी , नीतीश कुमार के लिए राजद के दिवंगत सांसद शहाबुद्दीन की उस टिप्पणी को दुहराया था जिसमें नीतीश कुमार को परिस्थितियों का नेता बताया गया था। पाण्डेय जी न केवल नीतीश कुमार को परिस्थितियों का नेता बताया बल्कि  यहाँ तक कह दिया कि  ‘मुझे किसी से डर नहीं लगता। मैं नीतीश कुमार के खिलाफ बोलता रहूंगा, वे मेरे नेता नहीं है। मैं डरने वाला नहीं हूं।’ पाण्डेय जी के इस बयान के बाद पार्टी विलय कर जदयू के नेशनल कॉउंसिल में बैठे उपेंद्र कुशवाहा को बर्दाश्त नहीं हुआ । उन्होने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल से पूछा कि यदि ऐसा ही बयान जदयू के किसी नेता ने भाजपा या उसके किसी नेता के बारे में दिया होता तो  क्या कार्रवाई होती? खैर कार्रवाई स्पष्ट हो चुकी है । टुन्ना पाण्डेय भाजपा से निकाले जा चुके हैं।

एमएलसी का काट एमएलसी के पास, संजय सिंह काटने वाले थे उंगली

टुन्ना पाण्डेय एमएलसी हैं और कुशवाहा से बात नहीं जम रही थी। नया एमएलसी सामने आये संजय सिंह पेशे से जदयू के मुख्य प्रवक्ता हैं। संजय सिह कह दिये थे उनके पास भी जुबान है। नीतीश कुमार पर उंगली उठायी तो काट देंगे। अब काटना उंगली चाह रहे थे या कुछ और पता नहीं। उन्होने हिदायत दी थी कि बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती है। उस सीमा के, लक्ष्मण रेखा को मत पार करो। ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। कोई माई का लाल पैदा हुआ है जो नीतीश कुमार को जेल भेजवा दे? यहीं नहीं एमएलसी महोदय यह भी मानते हैं कि भाजपा एमएलसी टुन्ना पाण्डेय शराब कारोबारी रहे हैं । कारोबार बंद होने के कारण नीतीश कुमार पर गुस्से में रहते हैं। खैर, बात चाहे जो भी हो राजनीति में नमूने बहुत हैं । हम सब को बस सुनकर और पढ़कर चलता करने की जरूरत है। फिलहाल पाण्डेय जी भाजपा से चलता (BJP expelled Tuna Pandey) कर दिये गये हैं।

Red yellow orange alert

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कुछ दिन पहले हीं तौकते चक्रवाती तूफान के प्रभाव से भारत का दक्षिणी हिस्सा उबरा है। अब पूर्वी भारत के बंगाल ,उड़ीसा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह समेत बिहार और झारखण्ड जैसे राज्य यास तूफान के प्रभाव (Yash cyclone Impact ) में हैं। जब कभी भी तूफान या चक्रवात आतें हैं तो भारतीय मौसम विभाग की ओर से अलर्ट जारी किया जाता है। अलर्ट में अक्सर रेड अलर्ट( Red alert), यलो अलर्ट (Yellow Alert ) और ऑरेंज अलर्ट (Orange alert) जैसे शब्दावली का प्रयोग भारतीय मौसम विभाग ( IMD) की ओर से किया जाता है। चक्रवात (cyclone) य़ा आमतौर पर भी मौसम खराब होने के समय में प्रयोग किये जाने वाले इन शब्दावली का क्या है मतलब आइए एक-एक करके समझते हैं।

चक्रवात में  रेड अलर्ट ( Red alert during cyclone )

रेड अलर्ट अक्सर चक्रवात के समय हीं जारी किया जाता है।  भारत फिलहाल यस चक्रवात से  प्रभावित ( Yash cyclone Impact ) हो रहा है।  देश के ज्यादातर तटीय इलाके में जब चक्रवात आने की संभावना रहती है तब चक्रवात के कारण हवा की रफ्तार स्थापित चीजों के सहन करने की क्षमता से अधिक होती है। तब जान- माल की बड़े पैमाने पर नुकसान का खतर रहता है। ऐसी स्थिति में भारतीय मौसम विभाग (IMD) की ओर से रेड अलर्ट जारी किया जाता है। रेड अलर्ट जारी होने का मतलब यह समझा जाना चाहिए कि इलाका फिलहाल रहने योग्य नहीं है ।यहां जान का खतरा हो सकता है। रेड अलर्ट के इलाके में एनडीआरएफ (NDRF) , एसडीआरएफ ( SDRF ) और सेना के जवान लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए तत्पर रहते हैं । इलाके के सार्वजनिक परिवहन , स्कूल सेवा , तथा अन्य रूटीनी (सामान्य)  कार्य तूफान से उत्पन्न स्थिति सामान्य होने तक बंद कर दिये जाते हैं।

यलो अलर्ट ( Yellow alert ) मतलब सचेत रहना है।

यास चक्रवात के प्रभाव ( Yash cyclone Impact )  के कारण कई इलाके में यलो अलर्ट भी जारी किया गया है।  यलो अलर्ट सिर्फ चक्रवात के समय हीं नहीं बल्कि आपके इलाके के मौसम खराब होने, भारी बारिश होने की संभावना पर , बिजली गिरने की संभावना आदि के समय भी यह अलर्ट जारी किया जा सकता है। यलो अलर्ट का मतलब है कि आप अपने रूटीनी (सामान्य)  काम पर लगे रहें लेकिन सतर्क रहने की जरूरत है। मौसम विभाग की सूचनाओं से खुद को अपडेट रखें। चक्रवात के समय यलो अलर्ट जारी होने की संभावना का मतलब है कि आपका इलाका रेड अलर्ट वाले इलाके से सटा हुआ है । आपके इलाके में हवा की तेज रफ्तार रहेगी और भारी बारिश     होने की संभावना है।

ऑरेंज अलर्ट ( Orange alert ) का मतलब “तैयार रहना है”

मौजूदा समय में जब तौकते चक्रवाती तूफान से उबरने के बाद भारत का पूर्वी भाग यास चक्रवात के प्रभाव ( Yash cyclone Impact) में है तब कुछ इलाके में  ऑरेंज अलर्ट भी जारी किया गया है। रेड अलर्ट की तरह हीं ऑरेंज अलर्ट है । ऑरेंज अलर्ट जारी होने का सामान्य मतलब है कि खराब मौसम के प्रभाव के लिए आपको तैयार रहना है। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ चक्रवात के समय ही जारी की जाती है। ऑरेंज अलर्ट में मौसम का मतलब ठंढ़ा ,गर्मी और वर्षा किसी भी समय के खराब मौसम से हो सकता है। मौसम विभाग खराब मौसम में यह अलर्ट जारी कर सकता है। खराब मौसम का असर खास इलाके के जनजीवन पर पड़ता है। ऑरेंज अलर्ट के समय प्रशासन कुछ समय के लिए यात्रा , स्कूल और दूसरी जरूरी सेवाओं का ख्याल रखती है जो प्रशासनिक स्वविवेक और इलाके की स्थिति पर निर्भर करता है। प्रशासन चाहे तो स्कूल आदि भी बंद  कुछ समय के लिए करवा सकते हैं।

क्या पूरी दुनिया रेड, ऑरेंज,  यलो अलर्ट जारी करता है ?  

आम तौर पर चक्रवातों के प्रभाव या आम मौसमी प्रभाव को इंगित करने के लिए भारत समेत दुनिया के लगभग सभी देश इसी प्रणाली का प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन अपवाद के रूप में कुछ ऐसे भी देश मौजूद हैं जो खराब मौसम से संबंधित अलर्ट जारी करने के लिए अलग संकेतों का प्रयोग करते हैं। स्वीडन ऐसा हीं एक देश है। स्वीडन अपने नागरिकों को सतर्क करने के लिए जिन संकेतों का प्रयोग करता है उसमें क्लास-1, क्लास-2, क्लास-3 अलर्ट शामिल है। क्लास -1 से स्वीडन के मौसम विभाग का तात्पर्य सतर्कता है। क्लास-2 का मतलब मौसम खराब है और नागरिकों को तैयार रहनी है। क्लास-3 का मतलब स्थिति अतिगंभीर है तथा नागरिकों को सुरक्षित रहनी है।

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Yash Cyclone : कोरोना महामारी के बीच ताउते तूफान से मची दक्षिण भारत में तबाही का दौर अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि अगले 48 घंटे में यास नामक नये चक्रवात से उड़ीसा , पश्चिम बंगाल और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आस पास के क्षेत्रों में तबाही मचने की संभावना जतायी जा रही है। यास तूफान से कम से कम जान माल का नुकसान हो इसे लेकर हाई एलर्ट जारी कर दी गयी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार बंगाल की खाड़ी के पूर्वी-मध्य क्षेत्र में बना निम्न दबाव के क्षेत्र को भीषण चक्रवाती तूफान में तब्दील होने की संभावना है।  NDRF और सेना के जवान इससे निपटने की तैयारियों  में जूटे हैं।

हालांकि यास चक्रवात  ( Yash Cyclone ) ने अब तक दस्तक नहीं दिया है । चक्रवात से संबंधित खबरों से आप सबों को Update करेंगे हीं लेकिन आइए इससे पहले यह समझते हैं कि चक्रवातों के इतने उटपटांग नाम आते कहाँ से हैं और क्या है इनका मतलब ?

किसने किया है यास चक्रवात का नामकरण ?

यास तूफान ( Yash Cyclone ) का नामकरण ओमान देश ने किया है। यास का हिन्दी मतलब होता है निराशा । दरअसल उत्तरी हिंद महासागर के राष्ट्रों ने  साल 2000 में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामकरण के लिए एक नई प्रणाली का उपयोग करना शुरू किया । ये नाम अल्फाबेट  के हिसाब से देश के अनुसार सूचीबद्ध हैं। सामान्य नियम यह है कि नामसूची एक विशिष्ट क्षेत्र के WMO (world meteorological organization)  सदस्यों के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं (NMHS) द्वारा प्रस्तावित की जाती है और संबंधित उष्णकटिबंधीय चक्रवात क्षेत्रीय निकायों द्वारा उनके सालाना और दो साल में होने वाले सत्रों में अप्रूव (approve) की जाती है।

13 देश मिलकर रखते हैं भारत में आने वाले तूफानों के नाम

हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी , अरब सागर में उठने वाले चक्रवाती तूफानों के नाम कुल 13 देश मिलकर रखते हैं। WMO संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग एशिया और प्रशांत (WMO/ESCAP) पैनल ऑन ट्रॉपिकल साइक्लोन (PTC) में 13 देशों के सदस्य हैं। इनमें भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, मालदीव, ओमान, श्रीलंका, थाईलैंड, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन मिलकर चक्रवातों के नाम ( naming of cyclone) तय करते हैं।

नई जारी की गई सूची में 169 चक्रवातों के नाम हैं
आठ सदस्यों वाले पैनल ने 2004 में 64 नामों की एक लिस्ट फाइनल की थी। पिछले साल भारत में कहर बरपाने वाले चक्रवात के लिए अम्फान नाम उस सूची में अंतिम नाम था। WMO/ESCAP समिति ने 2018 में पांच और देशों को शामिल करने के लिए सदस्यों की सूची का विस्तार किया। पिछले साल, एक नई सूची जारी की गई थी जिसमें चक्रवातों के 169 नाम हैं। ये नाम 13 देशों के 13 सुझावों का संकलन है।

अगले तूफान का नाम क्या होगा ?

भारत में तबाही मचा गयी पिछले तूफान ताउते (तौकते ) का नामकरण इसी पद्धति से म्यान्मार ने किया था। तौकते का  मतलब होता है तेज आवाज निकालने वाली छिपकली  । म्यान्मार के बाद अब ओमान की बारी थी जिसने तूफान का नाम यास ( Yash Cyclone) रखा है यास का मतलब होता है निराशा । ठीक वैसे हीं यास के जाने के बाद जो तुफान आएगा उसका नामकरण पाकिस्तान के खाते से किया जाएगा और इस तूफान का नाम होगा गुलाब जिसका मतलब होता है खुशबु देने वाली फुल !

Massacre in Bihar history

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Massacre in Bihar : 21 मई 2021 को सेनारी नरसंहार के दोषियों को बरी कर दिया गया। 18 नवंबर 2016 के जहानाबाद जिला आदालत के फैसले को पटना हाईकोर्ट ने बदल दिया। मामले में शामिल सभी 13 अभ्युक्तों को बरी कर दिया गया।  जबकि जहानाबाद जिला आदालत ने 10 अभयुक्तों को मौत और 3 को उम्रकैद की सजा के अलावा एक-एक लाख का जुर्माना लगाया था। निचली आदालत ने पीड़ित परिजनों को सरकार द्वार 5-5 लाख का मुआवजा देने की बात कही थी। जब सेनारी के दोषियों को बरी किया गया है तो सवाल है क्या यह पहला नरसंहार है जिसके दोषियों को बरी किया गया। जवाब है ऐसा बिल्कुल भी नहीं ।

सेनारी नरसंहार का तार है शंकर बिगहा और नारायणपुर नरसंहार

बिहार में नरसंहार (Massacre in Bihar) का तार  एक दूसरे से जुडा हुआ है। सेनारी नरसंहार का तार जिन नरसंहारों से जुड़ा है उसकी मुख्य वजह पहले शंकर बिगहा और फिर नाराणपुर नरसंहार है। 25 जनवरी 1999 को जहानाबाद जिले के शंकर बिगहा में 22 दलितों की हत्या कर दी गयी थी। उसके ठीक एक पखवार बाद नारायणपुर में 10 फरवरी 1999 को 13 दलितों की । दोनों नरसंहार में कुल 35 लोग एक पखवार के अंदर मारे जा चुके थे। शंकर बिगहा और नारयणपुर नरसंहार का बदला लेनें के उद्देश्य से 18 मार्च 1999 को  अरवल जिला ( तब जहानाबाद )  के करपी थाना क्षेत्र के सेनारी गॉव में रात 7 बजे से 10 बजे के बीच भूमिहार जाति से आने वाले 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाकर गला रेत कर हत्या कर दी गयी थी । लोगों को शक था कि इस घटना को अंजाम पीपुल्स वॉर ग्रुप ( PWG )  के लोगों ने दिया है लेकिन सुबह जब पर्चा मिला तो साफ हुआ माओवादी संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ( MCC ) नें जिम्मेवारी लिया है। पर्चे में नाराणपुर और शंकर बिगहा  नरसंहार के बदले की बात कही गयी थी।

क्या हुआ शंकर बिगहा और नारणपुर के दोषियों का !

सेनारी नरसंहार के दोषियों के बरी होने की खबर सामने आने के बाद एक आम सवाल है कि फिर जिन दो नरसंहारों के प्रतिशोध  के कारण सेनारी नरसंहार हुआ था उन दो नरसंहार के दोषियों के साथ क्या हुआ ?

शंकर बिगहा नरसंहार ( Sankar bigha Massacre in Bihar )

25 जनवरी 1999 को हुए शंकर बिगहा नरसंहार में मारे गये 22 दलितों के हत्यारे चंद किलो मीटर की दूरी पर स्थित धोबी बिगहा गॉव के रहने वाले  थे। 22 दलितों के हत्या के मामले में 24 अभियुक्तों पर केस चला । 16 साल बाद हत्या की सूचना देनेवाले सूचक ने गवाह देने से इंकार कर दिया इसी को आधार बनाते हुए कोर्ट ने सभी दोषियों को बाईज्जत बरी कर दिया । यह पहला मामला था जब नरसंहार के  मामले में  जिला आदालत ने हीं दोषियों को बरी कर दिया । यह अपने आप में सोंचनीय और  रिसर्च का विषय है कि आखिर किन परिस्थितियों में शंकर बिगहा के दोषियों के खिलाफ सूचक मुकरा।

दूसरा नरसंहार जिसकी तार  सेनारी नरसंहार की पटकथा को लिखने में अहम योगदान दिया  वह है  नारायणपुर  नरसंहार । आखिर क्या हुआ नारायणपुर नरसंहार के दोषियों के साथ ?

नाराणपुर नरसंहार ( Narayanpur Massacre in Bihar )

10 फरवरी 1999 को 13 दलितों की हत्या को अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार का जिक्र भी आता है सेनारी नरसंहार का माओवादी संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ( MCC ) द्वारा छोड़े गये जिम्मेवारी लेने के पर्चे में । सवाल वही है कि इस नरसंहार के दोषियों के साथ क्या हुआ ?  नाराणपुर नरसंहार के दोषियों को सजा मिली या नहीं । इसका जवाब साल 2013 में हीं आ चुका है । विशेष आदलत के पास इतना सबूत था कि 7 अप्रैल 2010 को 16 दोषियों को फांसी और 10 को उम्र कैद की सजा दी जानी थी। लेकिन लगभग सवा तीन साल बाद 9 अक्टुबर 2013 को फैसला आया तो कोई सबूत नहीं थे लिहाजा सभी दोषियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि नारायणपुर और शंकर बिगहा दोनों नरसंहार को अंजाम देने वाले उसी जाति से थे जिस जाति के लोगों को सेनारी नरसंहार में हत्या की गयी थी।

बेल्छी नरसंहार ( Belchi Massacre in Bihar)  से शुरू हुआ नरसंहारों का इतिहास

बिहार में नरसंहारों के इतिहास पर जब भी बात की जाती है शंकर बिगहा , नारायणपुर  सेनारी बाद में आते हैं और बेल्छी नरसंहार पहले । देश में पहली गैर कॉग्रेसी सरकार थी,  साल 1977 था। बेल्छी में 8 पासवान और 3 सोनार जाति के लोगों को कुर्मी जाति के लोगों ने जिंदा आग में जला दिया था। एक 14 वर्षीय युवक ने अधजले आग से निकलने की कोशिश की तो पुन : आग के हवाले कर दिया गया था।  बेल्छी का चर्चा इसलिए भी होता है क्योंकि विपक्ष में बैठी तब भारत की पूर्व प्रधानमंत्री  इंदिरा गॉधी हाथी पर सवार होकर 13 अगस्त 1977 को पीड़ितों के आंसु पोछने पहुँची थी।

अगले भाग में ……

25 मई 2021 की  सुबह 10 बजे पढ़ें!

कैसे  नरसंहार गया में तो प्रतिशोध भोजपुर लिया जाने लगा !