देश के महान क्रांतिवीर स्वतंत्रता सेनानी और देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर देने वाले भगत सिंह( Bhagat Singh) की आज 113 वीं जयंती है . इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायपुर जिले के बगा में हुआ था .यह अपने जिंदगी के केवल 23 साल ही जी पाए फिर इन्हे अंग्रेजी हुकुमत द्नारा फांसी दे दी गई.
देश के लिए प्रेम , त्याग , सम्रपर्ण की भावना ही थी. जिसके कारण इन्हे शहीदे आजम की उपाधि दी गई . गांधी जी का असहयोग आंदोलन छिड़ने के बाद भगत सिंह गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रांतिकारियों के हिंसक आंदोलन में अपने लिए रास्ता चुनने लगे .
गांधी जी के असहयोग आंदोलन को रद्ध कर देने के कारण उनमें थोड़ रोष पैदा हुआ. फिर असहयोग आंदोलन की जगह देश की स्वतंत्रता के लिए इन्होने हिंसात्मक क्रांति का रास्ता अपनाना सही समझा .
इसके बाद जुलुसों में भाग लेना शुरू किया . कई क्रांतिकारी दल के सदस्य बने . अपने क्रांतिकारी दल में चन्द्रशेखर आजाद , सुखदेव , राजगुरु जैसे कआ महान क्रांतिवीर को शामिल किया . जिन्होने देश को आजाद करवाने में आपने प्राण तक गवां दिए.
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जालियावाला बाग हत्याकांड में भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला. लाहौर से नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर आजादी के लिए 1926 में नौजावान भारत सभा की स्थापना की . फिर ककोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित 6 क्रांतिकारियों को फांसी और 14 क्रांतिकारियों को जेल से इनके मन में असंतोष पैदा हुआ . जिसके बाद यह पं0 चन्द्रशेखर आजाद के साथ इनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए और इस संगठन में देश क् लिए सेवा , त्याग और पीड़़ा झेल सकने वाले नवयुवकों को तैयार करने लगे . हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया ..
अंगेजी हुकुमत में भारतीय ताकत का भय पैदा करने के लिए भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 14 दिसम्बर 1926 को लाहौर में सहायक पुलिस अधिक्षक रहे . अंग्रेज अधिकारी जे0 पी0 सांडर्स को मारा था . इस कारवाई में चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह का पूरा सहयोग दिया .
क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर शहीदे आजम ने नई दिल्ली में ब्रिटिश भारत की तात्कालीन सेन्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 4 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेके थे . फिर संसद के बाहर उन्होने इंकालाब जिंदाबाद , सम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाए .
संसद में बम फेकने के बाद साहसी भगत सिंह वहां से भागे नही बल्कि इन दोनों क्रंतिवीरों ने अपनी गिरफ्तारी खुद ही दे दी . करीब 2 साल इन्होने अपने दो साथियों सुखदेव और राजगुरू के साथ जेल में बीताएं . जेल से ही अपने लेखों के द्रारा क्रांतिकारी वितार व्यक्त करते रहे .
23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई. भगत सिंह बहुत कम उम्र में और कम समय में ही देश के लिए समर्पण , तयाग की भावना का उदाहरण पेश किया . जाते – जाते वह युवाओं रे आदर्श बन गए.
देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोर देने वाली भगत सिंब ने नौजावानों के दिलों में आजादी का जुनुन भरा ……