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वर्तमान सरकार किसानो विरोधी है।,तभी तो 13 दिनो के बात भी कोई रास्ता नही निकला रहा है।

जनबोल न्यूज केंद्र सरकार  के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का  अभी तक  हल नही  निकलता नहीं दिख रहा है। बिहार राष्ट्रीय

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केंद्र सरकार  के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का  अभी तक  हल नही  निकलता नहीं दिख रहा है। बिहार राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता इकबाल अहमद और प्रदेश मुख्य प्रवक्ता अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सरकार के साथ  आज  बुधवार को होने वाली मीटिंग भी टल गई है।

कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को वैसे तो सरकार से छठे दौर की चर्चा आज होनी थी। लेकिन मंगलवार शाम 4 बजे अचानक गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से मुलाकात का न्योता मिला। रात को बातचीत हुई, लेकिन फिर बेनतीजा रही। किसान कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। कृषि कानूनों को लेकर बुलाये गए भारत बंद का बिहार के सभी जिलों में मिलाजुला असर देखने को मिला।

राष्ट्रीय जनता दल के नेता इकबाल अहमद ने कहा कि बंद का असर सबसे अधिक असर दरभंगा, सहरसा, मोतिहारी, सीवान, मुजफ्फरपुर, आरा, नालंदा, जहानाबाद जिलों में देखने को मिला। किसान के बच्चे ही सीमा पर देश की रक्षा करते हैं और किसान के अन्न से ही देश का पेट भरता है।  इकबाल अहमद ने कहा कि हम हर संघर्ष में दृढ़ता के साथ अन्नदाताओं संग कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।  आगे राजद नेता इकबाल अहमद ने कहा है कि किसान अन्न, फल, सब्जी अगर देश को खिला सकता है तो अहंकारियों की सत्ता हिला भी सकता है।

बिहार के किसानों की इतनी दयनीय स्थिति है कि वह अपने ऊपर हो रहे अत्याचार और गरीबी को अपनी नियति मान चुका है। अगर आज पंजाब और हरियाणा के किसान एमएसपी के अधिकार और मंडियों के लिए लड़ रहे हैं।

यह ध्यान देने वाली बात है कि बिहार में 2006 में एपीएमसी ध्वस्त करने के बाद से एक फीसदी किसानों को भी कभी एमएसपी का लाभ नहीं मिला। वह गरीब होता गया, पलायन बढ़ता गया और बिहार का किसान मजदूर में बदल गया।

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