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पूर्व मुख्य मंत्री जीतनराम माँझी के विद्यालयों को पुन संचालित करने के बयान पर संज्ञान ले । – प्राईवेट स्कुल एसोसीएशन।

जनबोल न्यूज   पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माँझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से विद्यालयों को संचालित करने की गुहार लगायी है जिसका समर्थन प्राइवेट स्कूल्स एंड

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पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माँझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से विद्यालयों को संचालित करने की गुहार लगायी है जिसका समर्थन प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफ़ेयर एसोसीएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमायल अहमद ने पुरज़ोर तरीक़े से किया है और इस प्रस्ताव पर अविलम्ब संज्ञान लेने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गुहार लगायी है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमायल अहमद ने कहा की विद्यालयों को बंद रखने से पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है और ज़्यादातर बच्चे शिक्षा के लिए तड़प रहे है। ऑनलाइन पठन पाठन पूरी तरह से विफल हो चुकी है जिसके अनेको उदाहरण अभिभावक एवं विद्यार्थीगण स्वयं दे सकते है। अब यदि विद्यालय को खोलने में विलंब हुआ तो विद्यार्थियों की शिक्षा पूरी तरह से बाधित हो जाएगी और सभी विद्यालयों के शिक्षक , शिक्षिकाएँ एवं कर्मचारी पूरी तरह से बेरोज़गार एवं भुखमरी के शिकार हो जाएँगे जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी राज्य सरकार के ऊपर होगी। इसके बाद उन सभी शिक्षक शिक्षिकाएँ एवं कर्मचारियों के पास आंदोलन के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा।

राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमायल अहमद ने कहा की सभी विद्यालय संचालक अभी तक राज्य सरकार के ऊपर विश्वास करते हुए सभी शिक्षकों शिक्षिकाओं एवं कर्मचारियों को वेतन दे रहे है परंतु स्थिति दिन प्रतिदिन भयावह होते जा रही है। जब केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को विद्यालयों को खोलने का निर्देश दिया है तो विलम्ब किस बात की है ? यदि बच्चों को कोरोना होना होता तो विधानसभा चुनाव , बाज़ार , सिनेमा हॉल , होटेल , धार्मिक स्थल , यातायात , कार्यालय , विवाह समारोह इत्यादि के खुलने से क्यूँ नहीं हुआ ? क्या ये सभी अभिभावक इन सभी जगहों में जाने के बाद अपने घर नहीं जाते है यदि घर जाने के बाद भी किसी बच्चे को कोरोना नहीं हुआ है तो क्या कोरोना सिर्फ़ विद्यालयों में छिपा हुआ है की विद्यालय जाते ही बच्चों को कोरोना हो जाएगा।

हमलोगो ने सरकार के कोरोना सम्भंधित बयान को हास्यास्पद समझते उस पर प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा है परंतु अब पानी सर से ऊपर जा रहा है । क्या शिक्षक शिक्षिकाएँ एवं कर्मचारी आपके राज्य के नागरिक नहीं है ? सरकार का उदासीन रवैया अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा है।

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