जनबोल न्यूज
First Muslim Ladies Teacher
3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक लड़की का जन्म होता है, जो आगे चलकर इस देश की पहली महिला शिक्षिका बनती है। वह लड़की कोई और नहीं समाजसेविका सावित्रीबाई फुले थी। जब कभी भा सावित्रीबाई फुले का नाम आता है तो फातिमा शेख का नाम स्वत: जुड़ जाता है। संयोग भी ऐसा है कि 3 जनवरी को हीं देश सावित्रीबाई फुले का जन्म दिवस मनाता है और उसके ठीक 5 दिन बाद उनके सहयोगी और आधुनिक भारत के सबल नारी की कल्पना करने में कंधे से कंधे मिलाकर चलने वाली फातिमा शेख को 9 जनवरी को याद करता है। शायद सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख न होतीं तो हम लड़कियों की पढ़ाई के बारे में कोई बात तक नहीं कर पाते। अलग बात है कि इतिहासविदों ने इतिहास लेखन करते समय अपने स्याही ज्यादा खर्च करना इन दोनों नायिकाओं पर उचित नहीं समझा है लेकिन जैसे जैस देश की शोषित वंचित आवाम इतिहास के पन्नों में अपने नायकों की तलाश शुरू कर रही है तो कभी मतादिन भंगी , कभी झलकारी बाई, कभी सावित्रीबाई और फातिमा शेख इतिहास के पन्नो में स्वत: जगह बनाते चली जा रहीं है।
देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका
आज से ठीक 193 साल पहले 09 जनवरी 1831 को फातिमा शेख का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। फातिमा शेख को पहली मुस्लिम महिला टीचर के रूप में जाना जाता है। जब सावित्रीबाई फुले अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ लड़कियों की शिक्षा पर काम कर रही थीं, और लड़कियों के लिए स्कूल खोलनी की योजना बना रही थीं, तभी उनका साथ देने फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख सामने आते हैं, और फिर शुरू होता है लड़कियों की पढ़ाई का सिलसिला।
1848 में फातिमा शेख के घर बनी थी लड़कियों का पहला स्कूल
लड़कियों को पढ़ाने के लिए फातिमा शेख ने टीचर बनने की प्रशिक्षण भी ली और लोगों के मनोबल को भी बढ़ाया । सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों को पढ़ाने का कार्य शुरू किया। वक्त के साथ-साथ चीजें बदलने लगी और लोग अपने बेटियों को पढ़ाना शुरू करने लगे। ऐसा कहा जाता है कि जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं की शिक्षा की बात करना शुरू किया तो उनके इस काम से नाराज होकर उनके परिवार वालों ने उन दोनों को घर से निकाल दिया था, तब दोनों पति-पत्नी को फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने अपने घर में जगह दी थी। उस्मान शेख ने ही सावित्रीबाई फुले से अपने घर से लड़कियों को पढ़ाने की बात की थी। ऐसा कहा जाता है कि फातिमा शेख का ही वह घर था जहां से लड़कियों को पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ और फिर साल 1848 में फातिमा शेख के घर पर ही लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला गया।