भाषायी विविधता भारत की पहचान है । यहां कहावता कही जाती है कि कोस-कोस पर पानी बदले चार कोस पर भाषा। यानि भारत में हर लगभग 4 किलो मीटर पर पानी का स्वाद और गुण बदल जाता है तो लगभग 16 किलो मीटर पर भाषा और बोली । वाबजूद इसके लगभाग 44 प्रतिशत भारतीयों की मात्री भाषा या तो हिन्दी है या हिन्दी की कोई अन्य बोली। यह अलग बात है कि आज के समय में ज्यादातर लोगों का झुकाव अंग्रेजी की तरफ हो गया है, पर वर्तमान समय में भी भारत में राजभाषा और आधिकारिक भाषा के तौर पर हिंदी को ही पहचाना जाता है। हिंदी भाषा भारत के साथ-साथ विदेशों में बसे भारतीयों को भी अपनी एक अलग पहचान दिलाती है। विदेशों में भी हिंदी को खास दर्जा दिलाने के लिए हर साल 10 जनवरी के दिन विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। बात करें इसके इतिहास की हर किसी के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर 10 जनवरी के दिन ही विश्व हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है।
अब बात करते है हिंदी दिवस के इतिहास की, तो विश्व में पहली बार हिंदी दिवस 10 जनवरी 1974 को महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित किया गया था। इस महासम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य विश्व-भर में हिंदी का प्रचार प्रसार करना था। नागपुर में हिंदी दिवस के आयोजन के बाद सबसे पहले यूरोपीय देश नार्वे के भारतीय दूतावास ने पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया था।
इसके बाद दूसरा और तीसरा हिंदी दिवस भारतीय नॉर्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेश चन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था। भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने साल 2006 को घोषणा की कि प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाएगा।
ये है साल 2024 के विश्व हिन्दी दिवस का थीम
हर साल हिंदी दिवस अलग-अलग थीम पर बनाया जाता है। अगर इस साल की थीम की बात करें इस साल विश्व हिंदी दिवस सम्मेलन का फोकस हिंदी पारंपिरक ज्ञान और कृत्रिम बुद्दिमत्ता पर केंद्रित है।